गोरखपुर में मोदी और योगी का जादू फीका, बीजेपी परेशान

Modi and Yogi's magic fade in Gorakhpur, BJP disturbs

News Agency : गोरखपुर लोकसभा सीट को वापस जीतने के लिए बीजेपी ने शुरूआती ढिलाई के बाद आखिरकार पूरा जोर लगा दिया है। प्रदेश सरकार के दो-दो मंत्री यहां कैम्प कर रहे हैं तो खुद मुख्यमंत्री गोरखपुर लोकसभा सीट के हर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और हिन्दू युवा वाहिनी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं का सम्मेलन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ में पिछले साल लोकसभा उपचुनाव में हार से मिला घाव बीजेपी के लिए अभी भी हरा है। बीजेपी नेता इस हार को गोरखपुर का अपमान और कलंक बताते हैं। वे कहते हैं कि जिस गोरखपुर को महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) के नाम से सम्मान मिला है, वहां से हार अपनी कमजोरी से हुई है। इस बार कोई कमजोरी नहीं होनी चाहिए। उपचुनाव में बीजेपी की हार के तीन प्रमुख कारण सामने आए थे-विपक्षी दलों की एकता, बीजेपी के सवर्ण मतों में विभाजन और कम मतदान प्रतिशत। इस चुनाव में विपक्षी दल फिर एकजुट हैं। उपचुनाव में समाजवादी पार्टी उम्मीदवारको बीएसपी, पीस पार्टी और निषाद पार्टी का समर्थन हासिल है। वैसे यूपी में इस बार एसपी-बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन है। निषाद पार्टी , बीजेपी के साथ मिल गई है। पीस पार्टी अलग-थलग पड़ गई है। वह गोरखपुर में चुनाव नहीं लड़ रही है। इस बार गोरखपुर से कुल ten प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें सीपीआई से आशीष कुमार सिंह, कांग्रेस से मधुसूदन त्रिपाठी, बीजेपी से रवि किशन, महागठबंधन से रामभुआल निषाद, सुहेलदव भारतीय समाज पार्टी से अभिषेक चंद्र मुख्य हैं। गोरखपुर के चुनाव में निषाद और ब्राह्मण मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब भी निषाद मत बीजेपी के विरोध में एकजुट रहे बीजेपी को कड़ी चुनौती मिली। योगी आदित्यनाथ जबसे चुनाव लड़ रहे हैं, उन्हें निषाद नेताओं से ही चुनौती मिलती रही है। सिवाय 2009 के चुनाव को छोड़कर। वर्ष 2009 के चुनाव में सपा और बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार दिए तो 2014 में दोनों ने निषाद प्रत्याशी को मैदान में उतारा। इससे विपक्षी मतों में बंटवारा हुआ जिसका लाभ बीजेपी को मिला। लोकसभा उपचुनाव में तो निषाद मतों का बीजेपी के खिलाफ गोलबंद होना और उसके साथ दलित, यादव और मुसलमान मतों का जुटना ही बीजेपी की हार का कारण बना। निषाद पार्टी को अपने साथ लेकर बीजेपी ने निषाद मतों का समर्थन पाने की कोशिश की है, लेकिन निषाद पार्टी के अध्यक्ष के बेटे और उपचुनाव में एसपी से जीते प्रवीण निषाद गोरखपुर के बगल की सीट संत कबीर नगर से लड़ रहे हैं। संत कबीर नगर भी निषाद बाहुल्य सीट है। संतनकबीर नगर से चुनाव लड़ने के कारण निषाद पार्टी की पूरी ताकत वहां लगी हुई है। निषाद पार्टी गोरखपुर में कही भी नजर नहीं आ रही प्रवीण निषाद यदि गोरखपुर से चुनाव लड़ते तो निश्चित रूप से निषाद मतों में बंटवारा होता और विपक्ष कमजोर होता लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। उधर गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रामभुआल निषाद बड़े निषाद नेता है। वह दो बार विधायक रहे हैं। बिएसपी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 2014 में गोरखपुर लोकसभा का चुनाव बीएसपी से लड़े थे और तीसरे नंबर पर आए थे। वर्ष 2014 के चुनाव के बाद रामभुआल निषाद बसपा से बीजेपी में आ गए थे और वह गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। इससे नाराज होकर उन्होंने बीजेपी छोड़ दी और सपा में आ गए। चुनाव शुरू होने के पहले निषादों के एक और बड़े नेता अमरेन्द्र निषाद और उनकी मां पूर्व विधायक राजमती निषाद बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन टिकट नहीं मिलने पर forty two दिन बाद दोनों फिर सपा में वापस आ गए। इन दोनों घटनाक्रम ने निषादों को एक बार फिर बीजेपी के खिलाफ नाराजगी पैदा की है। उनमें यह बात घर कर गई है कि गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के रहते निषादों की राजनीति दबी रहेगी। निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को गोरखपुर के बजाय संतकबीरनगर से लड़ाने को भी वह इसी नजरिए से देखते हैं. इस तरह से महागठबंधन प्रत्याशी ‘ मुनियाद’ फैक्टर यानि मुसलमान, निषाद, यादव, दलित की बुनियाद पर बहुत मजबूत है। कांग्रेस द्वारा ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने से भी बीजेपी संकट में है। कांग्रेस प्रत्याशी मधुसूदन तिवारी एक बड़े वकील हैं और जाना पहचाना नाम हैं। वैसे तो इस सीट पर कांग्रेस का कोई खास आधार नहीं है, लेकिन मधुसूदन तिवारी के लड़ने से कांग्रेस के वोटों में इजाफा होने की उम्मीद है। वह जितना अधिक वोट पाएंगे , बीजेपी को उतना ही अधिक नुकसान करेंगे। बीजेपी प्रत्याशी अभिनेता रवि किशन तो सिर्फ मोदी-योगी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं। साथ ही साथ वह खुद को ‘गरीब ब्राह्मण’ भी बताते हैं। उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ल को ब्राह्मण मतदाताओं का समर्थन मिला था। उनका टिकट कटने से ब्राह्मणों में नाराजगी है। वह रवि किशन को उस तरह स्वीकार नहीं कर रहे हैं जैसे उपेन्द्र दत्त शुक्ल को स्वीकार किया था। रवि किशन का बाहरी होना भी उनके खिलाफ जा रहा है। वैसे हिन्दू युवा वाहिनी के बागी सुनील सिंह का नामांकन खारिज होने से बीजेपी को राहत मिली है। अगर वह चुनाव लड़ते तो बीजेपी के ही मतों में सेंध लगाते। कुल मिलाकर बीजेपी को यह सीट वापस पाने के लिए नाको चने चबाना पड़ेगा। गोरखपुर संसदीय सीट में पांच विधानसभा आते हैं- पिपराइच, सहजनवा, कैम्पियरगंज, गोरखपुर ग्रामीण और गोरखपुर शहर। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी पांच विधानसभा सीट जीत ली थी लेकिन लोकसभा उपचुनाव में वह तीन विधानसभा. सहजनवा, कैम्पियरगंज, गोरखपुर ग्रामीण से सपा प्रत्याशी से पिछड़ गई। वर्ष 2017 में बड़ी लहर होने के बावजूद पांचों विधानसभा में उसे कुल मिलाकर 125820 की बढत हासिल हुई जो 2014 के लोकसभा में मिली 312783 मत की बढत से काफी कम थी। हालांकि बीजेपी प्रत्याशी को लेकर कम उत्साह बीजेपी की इस रणनीति में बाधा बन रहा है। शहरी मतदाता बीजेपी प्रत्याशी को लेकर बहुत खुश नहीं हैं। बीजेपी को इसका भान है। इसलिए प्रत्याशी के नाम पर कम मुख्यमंत्री द्वारा गोरखपुर में कराए गए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांगा जा रह है।

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